छाती फूल जाती है अपने अनजान भाइयों को देख जो सड़कों पे सम्प्रदाय सम्मत गलबंद और परचम लिए और हथेलियों में कसे तलवार और ख़ंजर, निकल पड़ते हैं हमारे धर्म की विधर्मियों से हफ़ाजत करने की क़सम लिए हुए अपने सर पे।
मन करता है जानने को कि ये कौन हैं, किन आदर्श धर्मावलम्बियों की अद्भुत संतान हैं।कहाँ से आते हैं ये वीर जो पढ़ायी , नौकरी, रोज़मरा के आर्थिक जद्दोजहद , गृहस्थ कर्मकांड सभी कुछ त्याग कर इतनी कर्मठता से घोर तकलीफ़ एवं सम्भावित विलुप्तता में आहत हमारे अमर अजर धर्म की रक्षा का बीड़ा उठाए हैं। कैसे ये बहादुर समूह शक्ति का प्रदर्शन करते सरलता से दूसरों को धमकाते डराते हैं।पढ़ाई लिखायी तो त्याग ही दी होगी शायद, कभी विद्यालय जाना भी वरीयता में प्राथमिक न रहा होगा इनके लिए इस धर्मयुद्ध के चलते। नौकरी तो नहीं ही करते होंगे ज़रूर या घोर बेरोज़गारी के चलते नौकरी की अपेक्षा को भी धर्म के हित में बलिदान कर दिया होगा। वरना इतना वक़्त कैसे निकाल पाएँ इस महान कार्य के लिए।
इनके अभिभावक माता पिता भी तो कितने खुले विचारों के है जो बच्चों को विधर्मियों से भिड़ाने खुला छोड़ रखे हैं। कितने उत्तम संस्कार हैं। धन्य हैं धर्म के ये सैनिक व इनके परिवार ।गर्व होता है। नतमस्तक हैं।
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