भारत की बेटियाँ इन समाजद्रोही बिगड़ैल मर्दों को सबक़ सिखा सकती हैं। औरतों को ड्रेस कोड सिखाते हैं और खुद निर्लज बटन खोल गलबंद बांधे अपने ही भगवान को बदनाम करते रास्ते में बहनों बेटियों को बेहूदगी से प्रताड़ित करते हैं। भगवान का नाम इस्तेमाल कर भगवान को भी तृसकृत करना चाहते हैं।
बुर्का सभी चाहेंगे कि ना रहे, ये दक़ियानूसी पुराना असामाजिक चलन माना जा सकता है। किंतु, हिजाब यूनफ़ॉर्म क्यों नहीं हो सकता? रंग तय कर लो। सिखों को पगड़ी की अनुमति हर संस्थान में है। बुर्का भी आज के वक्त के मुताबिक़ एक अस्वीकार्य रस्म हो सकती है , पर यदि कोई अपने निजी या असंस्थागत स्थान में पहनना चाहे तो रोका नहीं जा सकता। सिख जो आज चुप बैठे हैं कल उनका नम्बर आएगा, पगड़ी उनकी भी इन की निगाह से बचेगी नहीं।
किसीने कहा कि आज हिजाब, कल नमाज़ के लिए स्थान माँगेंगे। क्यों नहीं माँग सकते? ये देना है या नहीं हम मिल बैठ के तय करेंगे। यही लोकतंत्र है। सबकी सुननी है। सबको सहूलियत दे सकें इसी लिए भारत देश का गठन एक संविधान के अंतर्गत किया।वरना ५६० देशों वाला स्वतंत्र सूबों का उप महाद्वीप रह जाते।
बुर्का, हिजाब, नमाज़, हलाल, सिखों की पगड़ी ये सब अनिवार्य धार्मिक परम्पराएँ हैं।धर्म की बहुत सी मान्यताओं पे तर्क नहीं होता, कुछ मौलिक होती हैं । जब तक आस्था है चलेगा । सदियों से सब जानते हैं यह इनमें कुछ आज के संदर्भ में सामाजिक रूप में अस्वीकार्य हो सकती हैं। किंतु ये हमारे किसी हिंदू ग्रंथ में नहीं दर्ज है , ना ही ऐसी कोई परम्परा कहीं रही है कि भगवा गलबंद पहनना अनिवार्य हो या मास नहीं खा सकते या फिर मास हलाल का नहीं खा सकते। या जय श्रीराम बोलते रास्ते लगना है। हम लिबरल हिंदू धर्म के अनुयायी हैं, हो सकता है राम से बड़े हमारे लिए परशुराम हों। या हमारा ग्राम देवता हमें सुदूर के कृष्ण और हनुमान से ज़्यादा पूजनीय हो? हम क्या पहने ये भी निर्धारित नहीं है। किंतु जिनको उनके मत एवं आस्था के अनुसार ऐसी अनिवार्यता है, उसका आदर होना ही होगा। यही लोकतांत्रिक शासन है।
हमने अपने ऑफ़िस में हवन पूजा सब देखा है, बिस्मिलाह करके कुछ शुरू हुआ हो कभी नहीं सुना। 'हिंदू अनडिवायडेड फ़ैमिली' (HUF) के नाम पे हमारा ही एक विशेष कर धनाढ्य व्यापारी वर्ग, खूब सुविधाएँ अर्जित करता है । और इन ही कारणों से, ये ही दक्षिणी विचारों के स्तंभ भी ज़ोरदार हैं। देखा जाय तो आरक्षण भी तो हिंदुओं के ही एक वर्ग को लाभित है। फिर क्यों उपेक्षित अनुभव करते हो, सब तो है ?
एक दूसरे को आदर दो और एक दूसरे को सहो वरना देश के दुश्मन सीमाओं पे भीतर आने को आतुर हैं। उनसे भीड़ों। अपनी बेटियों को मत अपना बंधक बनाओ और ना ही निजी क़ानून लगाओ उनपे ।
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