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हमारे मंदिर, कब की विरासत

जैन और तद्दपश्चात बौद्ध धर्म ही विशेष रूप से संगठित एवं नियम बद्ध मूल धर्म रहे हैं सदियों तक भारत के। अन्य समुदाय अलग अलग देवताओं को मनाने वाले विभिन्न संस्कार, कर्म कांड करने वाले पंथ भर रहे है। तथाकथित वैदिक लोग भी शायद इन्हीं में कुछ थे जो बौद्ध धर्म के उत्थान के साथ और नगण्य हो गये या कालांतर में बौद्ध धर्म में समाहित हो गये ( और जैन-बौद्ध धर्म से ही निकल, नये देवताओं और कथाओं के साथ पुनः भी पनपे और सशक्त भी हुए कुछ सदियों बाद)। बौद्ध धर्म ने चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर लगभग ११०० साल हिमालय से दक्षिण समुद्र तक एक छत्र अपना प्रभाव रखा।

वैदिक देवी देवता और कर्म कांड नये विभिन्न रूपों में चौथी पाँचवीं ईसवी से कुछ राजाओं जैसे गुप्त सम्राट, द्वारा संरक्षण पा पुनः जीवन दान पाने लगे। पूर्व मध्य युग में मुख्यतः आक्रामक हुनों के अत्याचारों और दक्षिणी राजाओं द्वारा शिव विष्णु के उपासकों को दिये संरक्षण के चलते ही बौद्ध धर्म अगली कुछ सदियों में विलुप्त सा हुआ । हिंदू देवताओं के लिए मंदिर निर्माण भी तभी लगभग ५-६ शताब्दी में आरंभ हुआ। 

बलशाली सम्राटों द्वारा मंदिर या तो बौद्ध विहारों को परिवर्तित कर बनाये गये या नये। चौथी पाँचवीं शताब्दी से पूर्व शायद ही वैदिक मंदिर निर्माण का प्रमाण हो। यदि है तो वह बौद्ध जैन विहारों को परिवर्तित कर के बने मंदिर रहे होंगे कदाचित्।उन दिनों ‬मंदिर पूजा अर्चना के लिए कम चालुक्य, पल्लव, राष्ट्रकूटा, चोला सम्राटों के बल एवं शक्ति के चिह्न अधिक थे और वही राजा इनका निर्माण करवाते थे। राजाओं की शक्ति की प्रदर्शनी रहते थे मंदिर। इसी लिए युद्ध में जीत के पश्चात मंदिरों को विजयी राजाओं द्वारा तोड़ा जाना उतना ही उत्साहवर्धक रहता था जितना पराजित राजा के क़िले और महल ध्वंस करना। सदियों बाद भी यही परंपरा रही चाहे राजा मुग़ल मुस्लिम हो या हिंदू। उनके लिए मंदिर शक्ति का चिन्ह या प्रतीक भर रहे हैं जिसका तोड़ना किसी पराजित राजा का गर्व तोड़ना होता था मुख्यतः।उस काल के नैतिक आचरण के सिद्धांत आज के युग से नीचे और  भिन्न थे बस। 

बाक़ी सब राजनीति रहती थी और है।

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