This blog

Creating future on liberally expanding rational thinking. A mind fixated to past self destructs.

life | society | energy | politics | history | poetry | اردو


राहुल गांधी

देश के हर नागरिक को राजनीति करने का अधिकार है। जिसका बाप प्रधानमंत्री भी रहा हो उसको भी। 

यदि सन् २००५ में १०० मीटर की  स्प्रिंट दौड़ते और जीत जाते थे तो शायद लोग कह पाते कि इनको तो नाम का, ख़ानदान का, और पिता का, माँ का, और रेस के आयोजकों तक का सहारा मिला होगा और स्टार्ट लाइन से आगे खड़ा कर दौड़ाया था। सही है, किंतु ये राजनीति की रेस दो दशक से भी ज़्यादा की मैराथन निकली। आज २५ साल बाद और मैराथन के लाखोंवें मरहले या गर्दिशों  के बाद भी कोई ये कहे  कि परिवार के नाम की बैसाखी लिए है तो ये निरर्थक  बकवास होगी। 


इस दौरान  राहुल ने इस दौड़ के हर मरहले, लैप में अपनी निजी क़ाबलियत का प्रदर्शन बखूबी किया है। सब्र से इतने ताक़तवर दुश्मनों का सामना कर, तिरस्कार और गाली गलोच तक सह लेना किसी को भी तपा के ख़रा  कर सकता है। जो धनाढ्य व्यवसायी अपनी अयोग्य औलादों को बोर्ड में ऊँचा बिठा लेते हैं, जो नेता अपनी संतानों को नाकाबिल होने पे भी बड़े सरकारी पद या खेल का प्रबंधन दे देते हैं, जो फ़िल्मी हस्तियों अपनी औलादों को हीरो बना  देते हैं और  उनके लिए फ़िल्में बनाते हैं, वे सब मुनाफ़िक़ भी परिवारवाद का इल्ज़ाम लगा  कर राहुल का उपहास करते रहे हैं। लेकिन ये शख़्स  अपनी क़ाबलियत पे खड़ा है, परिवार की नहीं । किसी का डरना मुनासिब है

No comments:

Post a Comment