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मंदिरों का नियंत्रण निजी हाथों में वापस हो ??

वापस ? किसको वापस करना है? कौन है जिसको हैंडओवर करना है ? साधु भेष में टीवी पे कलयुगी मैला  फैला रहे बाबा लोगों को? जो मंदिर एवं अन्य धार्मिक स्थान पब्लिक ऑर्डर और पब्लिक हित में हों सभी govt कंट्रोल में ही होने चाहिए । जो नहीं है वे भी होने चाहिए। झूठे सांप्रदायिक भेद भाव फैला रहे निर्लज लोगों को नहीं दिया जा सकता व्यवस्था का नियंत्रण।  ये जनमानस से अन्याय होगा। ये देश लूटने वाले वास्तविक अधर्मी हैं। सालों से ये यही कपट कर रहे हैं और लोगों को  वर्ण, जाती और धर्म में बाँट अपना उल्लू सीधा कर रह हैं। 

वैष्णो देवी यात्रा पुराने समय में पूर्णतः अव्यवस्थित होती थी। पंडे परेशान करते थे। यही विश्वनाथ टेम्पल में था। सरकार का कंट्रोल आते ही काफ़ी  सुधार हो गया।  त्रिरूपति के सुंदर इंतज़ामात एक मिसाल है। ये सरकारी नियंत्ररण और पब्लिक जवाबदेही की वजह से है । आप सब क्या ये खोना चाहते हैं और निजी मठों और आश्रमों के पंडे साधुओं और उनके अनुयायियों के हाथों की बदइंतज़ामी और जबरन चंदाकशी में स्वयं को उलझाना चाहते हैं? 

सरकार किसकी है? सब की।सरकार हर जन का प्रतिनिधित्व करती है। सब से  बेहतर बात कि जनतांत्रिक सरकारें जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं। उनकी लापरवाही को लोग दंडित कर सकते हैं लोकतंत्र ये सुविधा देता है।मंदिर सार्वजनिक स्थान हैं। सरकार ही मंदिरों का जनहित संरक्षण करने में सही मायने में सक्षम है।

अन्य धर्मों के बड़े धर्म स्थान भी सरकारी कंट्रोल में होने चाहिए ये बात भी उतनी ही तर्क संगत है । जैसे अजमेर , निज़ामुदीन। यहाँ भी अव्यवस्था  है। 

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