इमरजेंसी ना लगती तब भी काम चला लेती इंदिरा, इतनी सक्षम तो थी ही। फिर भी लगा दी, तो दो साल कहीं देश वासी परेशान ना हुए। सब बढ़िया चला। लोग ऑफिस टाइम पे पहुँचने लगे। कॉलेज, यूनिवर्सिटी के एग्जाम पहली बार समय पे होने लगे। नक़ल बिलकुल बंद हो गयी।व्यवसाय , उद्योग हड़तालों से मुक्त रहे।इमरजेंसी लगी है ऐसा जन साधारण में कोई रोज़मर्रा का विशेष तकलीफ़ वाला विषय कुछ ना था।बर्थ कंट्रोल के कार्यक्रम को ले के जैसा आज चल रहा है तब भी govt सक्रिय थी।हाँ कुछ अगड़े चमचे उत्साह वश इस को ले कर कई जगह ज़्यादती किए, ये भी सही है। ओवरऑल माहौल इमरजेंसी में अच्छा ही था। देश भी जितनी तर्रकी किया उस वक़्त पहले नहीं किए था। ऐसा उस से पहले और बाद कभी नहीं देखा। परेशान कौन हुआ ? कुछ राजनीतिज्ञ, कुछ पत्रकार और कई वकील। बस। अब यही सब और इनकी पढ़ाई पौध ही करोड़ों लोगों में सब से अधिक आवाज़ रखती है। इनके पास मीडिया और संसाधन है। और झूठ की बेशर्मी। इनकी एक्सजरेटेड अतिशियोक्तियों का तिनका पहाड़ बन सब पे बोझ आज तक भी बना रहा है। निसंफ़ह कुछ ज़्यादती भी हुई। पर ऐसा कुछ ना हुआ जैसा आज वो सब कहानियाँ गढ़ लोगो को बरगलाते हैं।
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